मेरे मशहूर ना होने का मुझे कोई ग़म ना होगा |
सितारे छा जाएं भले पूरे आसमां पर ,
अँधेरा मगर कम ना होगा
मुझ में हजारों दोष हैं बेशक़ ,
मेरे जैसा मगर फिर कोई ना होगा ||
||
मैं क्या लिखता हूँ, वो ना समझते हैं ना महसूस करते हैं
मेरे हर अल्फ़ाज़ पर मूक हो जाने वाले
यार मेरे ...मोहब्बत भी मुझसे क्या खूब करते हैं
||
गरीबों की बस्ती में आमदनी के पर्चे बाँट रहे थे
वो बस वक़्त काट रहे थे
ये वो मुर्दे थे... ,जो ज़िन्दगी की झूठी पत्तल चाट रहे थे
||
नादान परिंदा हूँ , मेरी उड़ान को हौंसला दीजिये
इतनी नफरत भर कर जो बैठे हो ,
मोहब्बत को भी जरा दिल में एक घोंसला दीजिये
कहते हो सब ख़त्म हो गया बचा कुछ नहीं
खुद में झांकिए और खुदी को जला दीजिये
|||
अकेले ख्वाबों के सहारे ज़िन्दगी बसर करते रहे
कुछ वादे किये थे हमने उनसे ,
बस वो वादे असर करते रहे
||
वो रात भर जागता है
नसीब उसका, भला फिर क्यों सोता है ?
||
क्या इल्तिज़ा करें ख़ुदा से ,
कि बर्बादी के कगार पर हम हैं ।
इस क़दर ग़ुलाम हैं सियासतों के
कि मुद्दतों से बेगार पर हम हैं ।।
||
वो जो वतन की हिफाज़त करते हैं
गद्दार हैं
जो मज़हब की बात करें
वो ही समझदार हैं
कौन टाले क़यामत को अ-दोस्त
जो चोर हैं वही पहरेदार हैं
।।
मौत भी भला क्या सोच कर फ़कीरों से मिली
एक जान ही तो थी भला, वो भी ख़ुदा से उधार मिली
क्या जवाब दें उनके ख़त का हम ??
कल थी दिल मे ,आज वो शराब में मिली !!
||
मेरा यूँ जलना आग में ,
तेरा यूँ खिलना ज्यों बहार कोई बाग़ में
यूँ तो लिख दूँ सकल काल मैं
पर क्या लिखूं तेरी खुदी के जवाब में ?
||
इंतहा कोई तो हो मेरे सब्र की भी
बहुत महंगे हैं ग़र जनाज़े नवाबों के
कोई कीमत तो हो फ़कीरों की कब्र की भी ।
||
मेरे आँसुओं की भी कोई कीमत थी
वो फ़क़त पानी तो नही ।
ये जो ज़ीनत तेरे चेहरे पर आई है ,
फिर से कोई चाल है ,
महज़ जवानी तो नही ।।
||
मैं फिर वहीं लौट आता हूँ
पाँव उठाता हूँ, गिर पड़ता हूँ ।
अजीब अदब सिखा रही है ज़िन्दगी
सर झुकाता हूँ , ग़ुलाम हो जाता हूँ ।।
||
वे शामें हमने अक्सर यूँ ही गुज़ार दी ।
ना फ़लसफ़ा कोई ज़िन्दगी का,ना इल्म तेरा ।
बस तबस्सुम तेरे अधरों की और चंद सांसे उधार की ।
😎
||
ख़ुदा किस्मत मुझे भी नवाजता
ग़र मैं खुद्दार ना होता
कुबेर के बाजार में हम भी बिकते
ग़र जमाना गद्दार ना होता
।।
मुलाक़ातों के तेरे ऐसे वादे थे
मरकर भी मुक़म्मल ना हुए
तुझे भूलने के जो इरादे थे ।
।।
अक्सर ख़ुदा मेरे मुक़द्दर को लात मारता है
ना मैं हारता हूँ, ना वो जीतता है ।।
।।
ज़िन्दगी है कि चले जाती है
हम हैं कि राख होकर भी जले जाते हैं
ये तो ख़्वाब हैं चंद ,
हम हैं कि ज़िन्दगी समझ कर जिये जाते हैं |
||
उदास साँझ अक्सर पी लेता हूँ ।
मौत हर वक़्त गला दबाती है जिंदगी का ,
मैं इस शहर में भी जी लेता हूँ ।।
||
सूरज निकला है , सांझ ढलना बाकी है |
तुम जागे गये हो, मेरा सोना बाकी है
इंसाफ हुआ है !
अभी गुनाह होना बाकी है ||
||
अ-ख़ुदा मेरा मुकद्दर भी देख ,
बहाने बहुत हैं
और निशाना एक |
||
तेरी जुल्फों को हम भी संवार लेते
जागकर यूँ आँखों में रात हम भी गुजार लेते
हमे कुबूल नहीं इश्क़ तेरा
वर्ना चाँद जमीं पर हम भी उतार लेते |
||
यक़ीनन मैं अमर नहीं
जीतूँ मैं , एसे भी सब समर नहीं
पर लौट जाऊं मुरझाये फूल देखकर
ऐसा भी मैं भ्रमर नहीं
||
काली घनी झुल्फों के नीचे ,
झुमका बड़ा जालिम है
मैं तो यूं ही लिख देता हूँ ,
वो ही असली ग़ालिब है ||
सितारे छा जाएं भले पूरे आसमां पर ,
अँधेरा मगर कम ना होगा
मुझ में हजारों दोष हैं बेशक़ ,
मेरे जैसा मगर फिर कोई ना होगा ||
||
मैं क्या लिखता हूँ, वो ना समझते हैं ना महसूस करते हैं
मेरे हर अल्फ़ाज़ पर मूक हो जाने वाले
यार मेरे ...मोहब्बत भी मुझसे क्या खूब करते हैं
||
गरीबों की बस्ती में आमदनी के पर्चे बाँट रहे थे
वो बस वक़्त काट रहे थे
ये वो मुर्दे थे... ,जो ज़िन्दगी की झूठी पत्तल चाट रहे थे
||
नादान परिंदा हूँ , मेरी उड़ान को हौंसला दीजिये
इतनी नफरत भर कर जो बैठे हो ,
मोहब्बत को भी जरा दिल में एक घोंसला दीजिये
कहते हो सब ख़त्म हो गया बचा कुछ नहीं
खुद में झांकिए और खुदी को जला दीजिये
|||
अकेले ख्वाबों के सहारे ज़िन्दगी बसर करते रहे
कुछ वादे किये थे हमने उनसे ,
बस वो वादे असर करते रहे
||
वो रात भर जागता है
नसीब उसका, भला फिर क्यों सोता है ?
||
क्या इल्तिज़ा करें ख़ुदा से ,
कि बर्बादी के कगार पर हम हैं ।
इस क़दर ग़ुलाम हैं सियासतों के
कि मुद्दतों से बेगार पर हम हैं ।।
||
वो जो वतन की हिफाज़त करते हैं
गद्दार हैं
जो मज़हब की बात करें
वो ही समझदार हैं
कौन टाले क़यामत को अ-दोस्त
जो चोर हैं वही पहरेदार हैं
।।
मौत भी भला क्या सोच कर फ़कीरों से मिली
एक जान ही तो थी भला, वो भी ख़ुदा से उधार मिली
क्या जवाब दें उनके ख़त का हम ??
कल थी दिल मे ,आज वो शराब में मिली !!
||
मेरा यूँ जलना आग में ,
तेरा यूँ खिलना ज्यों बहार कोई बाग़ में
यूँ तो लिख दूँ सकल काल मैं
पर क्या लिखूं तेरी खुदी के जवाब में ?
||
इंतहा कोई तो हो मेरे सब्र की भी
बहुत महंगे हैं ग़र जनाज़े नवाबों के
कोई कीमत तो हो फ़कीरों की कब्र की भी ।
||
मेरे आँसुओं की भी कोई कीमत थी
वो फ़क़त पानी तो नही ।
ये जो ज़ीनत तेरे चेहरे पर आई है ,
फिर से कोई चाल है ,
महज़ जवानी तो नही ।।
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मैं फिर वहीं लौट आता हूँ
पाँव उठाता हूँ, गिर पड़ता हूँ ।
अजीब अदब सिखा रही है ज़िन्दगी
सर झुकाता हूँ , ग़ुलाम हो जाता हूँ ।।
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वे शामें हमने अक्सर यूँ ही गुज़ार दी ।
ना फ़लसफ़ा कोई ज़िन्दगी का,ना इल्म तेरा ।
बस तबस्सुम तेरे अधरों की और चंद सांसे उधार की ।
😎
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ख़ुदा किस्मत मुझे भी नवाजता
ग़र मैं खुद्दार ना होता
कुबेर के बाजार में हम भी बिकते
ग़र जमाना गद्दार ना होता
।।
मुलाक़ातों के तेरे ऐसे वादे थे
मरकर भी मुक़म्मल ना हुए
तुझे भूलने के जो इरादे थे ।
।।
अक्सर ख़ुदा मेरे मुक़द्दर को लात मारता है
ना मैं हारता हूँ, ना वो जीतता है ।।
।।
ज़िन्दगी है कि चले जाती है
हम हैं कि राख होकर भी जले जाते हैं
ये तो ख़्वाब हैं चंद ,
हम हैं कि ज़िन्दगी समझ कर जिये जाते हैं |
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उदास साँझ अक्सर पी लेता हूँ ।
मौत हर वक़्त गला दबाती है जिंदगी का ,
मैं इस शहर में भी जी लेता हूँ ।।
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सूरज निकला है , सांझ ढलना बाकी है |
तुम जागे गये हो, मेरा सोना बाकी है
इंसाफ हुआ है !
अभी गुनाह होना बाकी है ||
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अ-ख़ुदा मेरा मुकद्दर भी देख ,
बहाने बहुत हैं
और निशाना एक |
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तेरी जुल्फों को हम भी संवार लेते
जागकर यूँ आँखों में रात हम भी गुजार लेते
हमे कुबूल नहीं इश्क़ तेरा
वर्ना चाँद जमीं पर हम भी उतार लेते |
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यक़ीनन मैं अमर नहीं
जीतूँ मैं , एसे भी सब समर नहीं
पर लौट जाऊं मुरझाये फूल देखकर
ऐसा भी मैं भ्रमर नहीं
||
काली घनी झुल्फों के नीचे ,
झुमका बड़ा जालिम है
मैं तो यूं ही लिख देता हूँ ,
वो ही असली ग़ालिब है ||