आज से कुछ सालों पहले अन्ना जी के साथ मिलकर किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम शुरु की थी | कोई समाधान नजर ना आने पर केजरीवाल ने नयी राजनैतिक पार्टी का गठन कर लिया ,अन्ना एंव बेदी को भी न्यौता दिया गया पर उन्हें ये अनुचित लग रहा था |दिल्ली में चुनाव हुए बेदी ने "आप" की आलोचना की पर जनता ने उसके प्रयास को सराहा | यहाँ तक सब ठीक था अब जब फिर से चुनाव होने जा रहे हैं तो बेदी ने बीजेपी ज्वाइन कर आप के खिलाफ लड़ना उचित समझा है |बीजेपी उस समय भी अस्तित्व में थी जब वो राजनीती से तौबा कर रहीं थी ,विरोध कर रही थी इसी पार्टी का | केजरीवाल की 49 दिन की सरकार ने कोई घोटाला नही किया ,फिर भी बेदी जी केजरीवाल के खिलाफ चुनावी जंग में हैं वो भी बीजेपी से !!! राजनीती से दूर रहकर केजरीवाल का विरोध पूरी तरह उचित था लेकिन ये कितना उचित है ??बीजेपी में घुसकर लड़ना |न्यौता तो उन्हें आप से भी मिला था वो भी पार्टी के नेतृत्व का |तब क्यों स्वीकार नही किया ??
इन सब सवालों के दो ही जवाब संभव हैं :1:चूंकि केजरीवाल ने उनके विचारों के खिलाफ राजनीती में दाखिला दिया और दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन कर उनके इगो को चोट पहुचाई है और वे (बेदी जी )अपने इगो को पहुची चोट का बदला केजरीवाल से व्यक्तिगत रूप से लेना चाहती हैं |
2::किरण जी की नियति ठीक ना होना और यदि हो भी तो कब तक ?? चोरों के साथ रहकर कब तक साहूकारी करेंगी ?
यदि राजधानी की जनता इस बात को समझ पाती है तो किरण बेदी का बीजेपी ज्वाइन करना केजरीवाल के लिए फायदेमंद होगा ,हालांकि काफी मुश्किल है :हम भारतीयों की सोचने समझने की क्षमता कुछ ज्यादा ही बकैत है मेरे दायरे से बाहर |
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