"मैं मंज़िलों का पीछा करता रहा
ज़िन्दगी रास्ता बनकर बीत गयी
मैं ढूँढता रहा तेरी महक का सुरूर
तू पूरी मधुशाला बनकर बीत गयी
जब देखा पीछे मुड़कर तुझे
तू यादें बनकर बीत गयी "
मैं भी खाली हूँ , तू भी खाली है
आ बैठ कुछ बातें करते हैं
मेरे कंधे पर सिर टिका तू ,
दोनों मिलकर कोई ख़्वाब बुनते हैं
या कोई पहेली पूछ तू मुझसे ,
दोनों मिलकर हल करते हैं
जब पिछली बार मिली थी
कुछ हल्की सी थी ,
तुम्हारा बोझ बढ़ रहा है ?
या तोलने के मायने बदल रही हो ?
हर दिन अपना ठिकाना बदल देती हो
किसी और से मोहब्बत कर लेती हो !
हर रोज पुकारता हूँ
क्यों हर रोज परिभाषाएं बदल लेती हो ?
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