Monday, 12 February 2018

प्रेम-दिवस निकट आ रहा था
पप्पू पकोड़े तल रहा था
हमारा भविष्य था कि ,
विकट लग रहा था |
गलियारों में इश्क़ कि बयार चली थी
वक्त वो था ,
जब दिल में इश्क़ कि उम्मीद पली थी |

अचानक कुछ यूँ घोष हुआ
हर आशिक़ मदहोश हुआ |
सुना इश्क़ बिक रहा था ,
उसी ठेले पर,
जहाँ पप्पू पकोड़े ताल रहा था |

रण-वाहिनियाँ सी आ डटी थी
वक्त वो था ,
जब पहली बार हमारी भी फटी थी |
गुलाब, चॉकलेट सब अस्त्र-शस्त्र से तन गये थे
जो जीते रांझे बन गये थे
कहते हैं ,
जो थे पराजित सब कवि बन गये थे |

जख्म उस रण के
अब भी ना भूल पाता हूँ
टूटी-फूटी सी दिल कि कलम है
जख्मों से रिसते लहू को स्याही बना लेता हूँ ||

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