Tuesday, 2 May 2017


कस्तूरी मृग सी हो गयी है ज़िन्दगी
वो कहतें हैं  कि तुम  काबिल बहुत हो
और हम खुद  के इर्द-गिर्द भटक रहें हैं
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मैं बेहतर  हो रहा  हूँ
तुम्हारे पैमानों से नापा जा रहा  हूँ
ये पैमाने ओछे हैं  
और  परिभाषाएं नंगी हैं
या फिर भद्दे रंगों से रंगी हैं
इन्हें धो कर सुखाओ
ये निश्चय ही फीकी पड़ जाएंगी
तले दबी सभ्यताएं फिर जाग जाएंगी
यक़ीनन , तुम सब मारे जाओगे
जन्नत-जहन्नुम आसमान से गिर पड़ेंगे
देव-दानव भी मारे जाएंगे
सब साफ़ सफ़ेद कफ़न ओढाए जाओगे
मैं बर्बाद हो दैत्य बन जाऊंगा...to be continued






अंतिम छोर कोसों दूर है
तुम्हारी पैमानों कि  परिसीमाओं से
aa

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