काली घनी झुल्फों के नीचे ,
झुमका बड़ा जालिम है
मैं तो यूं ही लिख देता हूँ ,
वो ही असली ग़ालिब है |
इस क़दर पनप रही हो
ज़िन्दगी हो, या नफरत हो ?
जो इश्क़ दरिया था तुम्हारा,तो दिल मेरा भी समंदर था
कमबख्त कई दरिया साथ समेटे था ||
" शुक्र है ऐ खुदा तेरा जो तूने मुकद्दर मारा
जिंदगी को अब इरादों का साथ है "
" इश्क़ तो हमने भी बुलंदियों से किया
वफ़ादार मगर ठोकरें निकली "
वफ़ादार है मेरी तन्हाई
अक्सर मेरा साथ देती है
तुम नेक थे , ये धोखा था
हम एक हैं , ये भी धोखा है
एक शख्सियत थी तुम्हारी
एक हस्ती थी हमारी
हम नूर की गलियों में घूमा करते थे
तुम कलियों सी संवरा करती थी
हम अदब से पेश आये
अब मेरी तरफ देखो
ना चेहरे पे मेरे नूर है
और तुम जितना निखर रही हो
हम से तुम होकर उतना ही बिखर रही हो
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