निर्वाक-निनाद
मानव जाति का उद्भव और उसकी अभिव्यक्ति के माध्यम वक़्त का लम्बा सफ़र तय करने के बाद आज के इस डिजिटल दौर में पहुँचें हैं | हमारी अभिव्यक्ति और विचारों का तालमेल ही इस बदलाव की आधारशिला है | मनुष्य अपने विचारों को जाहिर तब भी करता था जब भाषा का जन्म भी नहीं हुआ था , त्रुटियां और खामियाँ तब भी थी और आज भी हैं | पूर्णता, निःसंदेह, एक भ्रम है अतःएव प्रगति और सुधार की जगह हमेशा से मौजूद रही है | इस सन्दर्भ में कुशलता से कहीं ज्यादा मायने रखती है -कोशिश ....निर्वाक-निनाद उसी कोशिश का एक हिस्सा है | जब अनन्त विचार दिमाग को कुरेदने लगते हैं तो भाव उत्पन्न होते हैं | यद्यपि इन भावों को कलम से हूबहू प्रकट करना असंभव है तथापि मैं इन भावों को कलम का रूप देने की एक निर्वाक कोशिश करता हूँ | ये कोशिशें उस परिवर्तन का हिस्सा बने जो स्वाभिक ना हो | बदलाव की अस्वभाविकता ही मनुष्य को जानवरों से अलग करती है , कभी उसको बदतर बनाती है तो कभी बेहतर | हमें बेहतर या बदतर बनाने में एक और कारक है -"क़ामयाबी और उसके मायने" ..
क़ामयाबी के ओछे पैमानों और मायनों के बीच भटकती जिंदगियाँ अक्सर यूँ ही गुजर जाती हैं | कुछ संकरे पैमानों से कामयाबी और काबिलियत को मापना प्रगति की उस असाध्य धारणा को जन्म देता है जो कहती है "पीछे धकेलो आगे निकलो " | ये वे ही धारणाएं हैं जिन्होंने मानव इतिहास को फ़्रांस क्रांति जैसे अध्याय दिए हैं | व्यक्तिगत स्वतंत्रता,गरिमा, क्षमता और भावनाओं का सम्मान करना ही हमारे मनुष्य होने को सार्थक करता है | इन्ही अध्यायों से सीखकर आगे बढ़ने की नसीहत देते खट्टे-मीठे विचारों की निर्वाक अभिव्यक्ति का संकलन है -निर्वाक निनाद |
**मैं और मेरा मत वक़्त के साथ बदलने का अधिकार रखते हैं |
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