Thursday, 8 March 2018

मेरी कविताओं के कुछ अंश वहाँ बिखेर देना
चुप्पी सी गुलामी घर किये बैठी है
बदलाव के कुछ अक्षर उन माथों पर उकेर देना ||

जो आदर्शों का दास था
कुछ वैसा ,
जैसा श्रीराम का वनवास था
रोशनदान उस अँधेरे में एक खोल आना
बहरी भीड़ में भी ,
मेरी कविताओं के कुछ अंश बोल आना ||

बदलाव कि स्वभाविकता बदली जाए
तर्कों के तरकश भरे जाएं
महाभारत के समर में ,
कौरव-पांडव दोनों पराजित हों
जय हो उनकी भी ,
जो थे एकलव्य , तुम्हे विदित हो ?

कर्जदार-किसानो की हड्डियों पर खड़े
पूंजीवाद के कारखानों की नीव उखाड़ देना
मरा अगर ख़ुदा किसी रोज
मेरी कविताओं के कुछ बीज कब्र पर बिखेर देना || 

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