तुम उतर आओ कविताओं में
क्यों अब तक खड़ी हो ?
अल्हड़ रात की चौखट पर
एक कदम बढ़ो तो ,
वीराने कानन में गूंजो तो
तुम शब्द बनकर मिलो कभी
मैं तैरूँगा तुम्हारे संग
प्रेम की नदियों में
कविताओं के सागर में
तुम थक चुकी हो ?!
मैं अनवरत सृजित हो रहा हूँ
कभी देखो चौखट के उस पार
मैं क्रंदन कर रहा हूँ
फिर से पुकारा है तुम्हे
आवाजें वापस लौट आई हैं
ये रात मुझसे बात नही करती ,
तुम्हारा ज़िक्र करता हूँ तो भाग जाती है
देखो फिर भाग खड़ी हुई
अब इसका पीछा मुश्किल हो गया है
बहुत चल लिया रेगिस्तान में
अब प्यास लगी है
कवितायेँ भी सूख गयी हैं ,
रसहीन हो चुकी हैं
अब तो तुम उतर आओ कविताओं में
क्यों अब तक खड़ी हो ?
अल्हड़ रात की चौखट पर
No comments:
Post a Comment