उसकी यादें ताज से ज्यादा खूबसूरत थी |
उजड़े चमन में बहार आती थी ,
जब वो हंसती थी |
उसका तो क्रंदन भी निराला था ,
हर एक आंसू उसका यमुना ने पाला था |
एक दिन तो बवाल हो गया ,
इतना रोयी मुमताज ,
कि यमुना के जलस्तर में उछाल हो गया |
ठहरिये जहाँपनाह ये कुछ ज़्यादा हो गया !
नहीं , नहीं!!
तुम ही देख लो |
ना मुमताज रही ,ना वो आंसू रहे |
अब सूखी यमुना है ,
उसके तट पर रोता , बुढ्ढा ताज है |
ना मैं याद हूँ , ना मुमताज याद है ,
तुम्हे पत्थर का ताज याद है |
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