Tuesday, 8 January 2019

बागी जुगनू

      मैं जुगनुओं कि बस्ती ढूंढ रहा हूँ
      वो जुगनू ,
      जो मुर्दा रात में चराग लाते थे
      रातों की चिता जला सवेरे तक लौट जाते थे
      मैं उन जुगनुओं की बस्ती ढूंढॅ रहा हूँ |

      जब से सरकारी केबल आयी है
      वो सब बागी हो गये हैं
      मैंने चम्बल छान मारी
      सुना है वो नुमाइंदों सरीके दागी हो गये हैं
      कुछ कहते हैं जबसे मैंने गाँव छोड़ा है
       उस बस्ती में आग लगा दी
      कुछ जो थे उजाले की ओट में बचे
      उन पर राजद्रोह की छाप लगा दी

      यक़ीनन वो लौट आयेंगे
      रातें फिर इतनी काली ना होंगी
       बस्तियां फिर कभी खाली ना होंगी

       उनके आने पर ,
       देखो तुम कोई दीप ना जलना
       वो अवधेश नहीं , ना सही
       वो विशेष नहीं , ना सही
      उनके पिछवाडों का मगर मखौल  ना उडाना


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