विचारों के द्वन्द में
कलम घुमाता हूँ
कुछ कल के
और
कुछ कल के
बेसुरे गीत गुनगुनाता हूँ
बंजर रेगिस्तान से
मुहब्बत कर बैठता हूँ
फिर प्यास से छटपटाता हूँ
मारा जाता हूँ
फिर जीवंत हो जाता हूँ
पी रक्त अपना
स्वयंभू हो जाता हूँ
निर्जल मरुधर में
लहरें आती है
ठीक वैसी ही ,
जैसी सागर पर तैरती हैं
भव भयानक
फिर नूतन हो जाता है
अमावस की काली रात के बाद
जैसा सवेरा हो जाता है
कलम घुमाता हूँ
कुछ कल के
और
कुछ कल के
बेसुरे गीत गुनगुनाता हूँ
बंजर रेगिस्तान से
मुहब्बत कर बैठता हूँ
फिर प्यास से छटपटाता हूँ
मारा जाता हूँ
फिर जीवंत हो जाता हूँ
पी रक्त अपना
स्वयंभू हो जाता हूँ
निर्जल मरुधर में
लहरें आती है
ठीक वैसी ही ,
जैसी सागर पर तैरती हैं
भव भयानक
फिर नूतन हो जाता है
अमावस की काली रात के बाद
जैसा सवेरा हो जाता है
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