चलती गाड़ी के पहिये रुकते हैं , ऊंट बड़ी जोरदार आवाज के साथ सड़क किनारे बने हौज पर पानी पी रहा है | उसके पैरों की छाप , पहियों की लकीरों के साथ पीछे रह जा रही है |
ऊंट को हांकता गाड़ीवान मुझे देखकर एसे मुस्कराता है जैसे मुझे जानता हो , मैं भी मुस्कुराता हूँ | उसकी घनी सफ़ेद मूंछे हल्की मुस्कुराहट के साथ और भी बड़ी लगती हैं | ग्राम्य सड़क पर बहुत गड्ढे हैं ,गाड़ी बहुत हिल रही है ठीक उसी समाज की तरह जिसको नेतृत्व तो मिला है पर तह में पड़े गड्ढे बार-बार उसे हिला देते हैं |
()*
पिछली बार सड़क की नापनी हुई थी सड़क थोड़ी सी चौड़ी भी होनी थी !
फिर ?
वो ठेकेदार कह रहा था कि .....
कि ?
आगे क्या बतायें साब हमे खुद ही खबर पर भरोसा नही ..
सड़क की उत्तर वाले गाँव में चार बड़े अफसर हैं | वे शहर में रहते जरुर हैं पर गाँव के बड़े चहेते हैं | हों भी क्यों ना ? हर ** और बड़े धूर्त भी |
धूर्त !!
()**
अब बात जमीन की नही रही बात ऊपर उठ चुकी है |
"साब बात इतनी हल्की ना है की इतनी आसानी से ऊपर उठ जाये "(वो बुड्ढा निरक्षर तो था पर शिक्षित था या जमीन ,जाति ,गाँव की सीमा से बंधी मानसिकता लिए था | ये मैं आप पर छोड़ता हूँ |)
No comments:
Post a Comment