तुमने ना गाँव देखा , ना जानते हो
फिर कैसे किसान के हालात पहचानते हो ?
कभी देखी है किसान की औरत ?
देखा है उसका मैला आँचल ?
नही ना !,तो फिर क्यों ?
उस आँचल से बेदाग़ समाज मांगते हो ?
कभी जाकर देखो , कभी मिलकर देखो
कभी खेती के नशे में फंसकर देखो,
फिर उस नशे को उतार कर देखो
उस गाँव का हर खेत एक मधुशाला है
हर शख्स मतवाला है ,
हर गली मयखाने सी महकती है |
फिर पड़ता है सूखा
फिर हर मधुशाला अंगारे सी दहकती है
जलती मधुशाला में किसी शराबी की औरत ,
अपना स्वाभिमान ढूँढती है
और उसकी रूह,
दूर कही मुआवजे की फाइलों के नीचे तडपती है |
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