धीरे चढ़ ये सीढियां , मंजिल मिलने पर बहुत याद आयेंगी |
सहेज कर रख यादें हैं, रूठ गयी तो बहुत रुलायेंगी ||
जालिम हर बात मुस्कुराकर पूंछते है,
उन्हें क्या मालूम इस दिल में सिर्फ गम बसते हैं ||
हमने पूछा उनसे ,तुम्हारा गाँव कितना ख़ूबसूरत है ?
जालिम ने हमारी तरफ आईना घुमा दिया ||
जुल्फों के समानान्तर टपकती लज्जा का
एक-एक कतरा मुझसे कहता ..
ओ शराबी रुक जा ,
उनके हुस्न से टकराकर तेरा रोम-रोम बहक जायेगा ,
पर बेपरवाह हम बढ़ते ही रहे इस आस में
की उनसे मिलकर जर्रा-जर्रा महक जायेगा ||
उनकी नज़रें पलटकर वार करती रहीं |
हम खड़े रहे उनकी गली में और
हमारी आशिकी उनके दर पे तडपती रही ||
फिर वो आये बाहर ,तो चाँद का नूर शरमा गया |
उनकी आँखों का सुरमा देख,
क्षितिज तक फैला अँधेरा गहरा गया ||
तुम्हे पाने की आस में , जर्रा-जर्रा उथल दिया|
फिर भी ना मिले तुम ,
तो वो बीज मुहब्बत हर जगह बिखेर दिया ||
रूबरू ना हुए तुमसे हम ,तो क्या ?
हमने तुम्हे कागज पर उकेर लिया ||
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