सपने है मेरे भी कुछ
पढ़-लिख समझ पता मैं भी ,
काश .......
तुमको , कौन हो तुम ?
जान पाता सरकार को |
पर तुम हो की छीन लेते हो ,
वजूद मुझसे मेरा |
मैं तो अनपढ़ हूँ
किसी और से सुनता हूँ ,
मेरी जमीन छिनने की खबर |
विकास खातिर ,
किसका ? किसकी कीमत पर ?
मुझे नही चाहिए
वह सड़क,
जिस पर चलकर
खुर घिसते हों मेरे बैलों के |
नहीं चाहिए शाला वो
जिसमे पढ़ बच्चे मेरे
मेरा इतिहास दोहराते हों |
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