सोच
कभी सरिता सी बह ,
प्यास बुझाती है
उफान ले तांडव करती है ,
पर नूतन राह भी खोजती है |
खुद में खुद को न पा मचलती है ,
मेघ बन बरसती है ,
मुझसे खेलती है ,
हँसती है ,
रोती है , फिर खुद को ही दुलारती है |
वह सव्यंभू नहीं |
वजूद खो देता हूँ , जब बिछड़ती है |
माना सोच शरारती है ,
पर शरारत में शराफ़त भी है |
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