बवंडर की लहरों सी विपदाओं को ललकारती,
वात्सल्य का घूंट पी मेरी कविताई में झलकती ,
छोटी दुत्कार के पीछे छुपी सागर सी ममता आज भी याद आती है |
जन्नत की चाह नहीं मुझे , तेरी ममता तले बसेरा मिले |
तेरी ममता वास्ते जग से झगड जाऊंगा ,
पर डरता हूँ माँ ,
वापस लौट पाऊंगा ??
मुझे न पा वह भी तो तडपती होगी ?
मुझे ढूंढती होगी ?
भटकती होगी ?
मुझे संदेह है माँ !!
क्या तेरी ममता का किनारा है ?
जवाब नहीं आया |
तुझे ढूंढती ममता को , इतनी फुर्सत कहाँ |
मै तो स्वार्थी हूँ ,
मुझे अपनी ही चिंता सताती है |
माँ!!!!
अन्धकार के पीछे छुपी ज्योति सी ममता आज भी याद आती है |
मुझे बुढ़ापा आ गया |
ममता को ज़रा भी जरा नहीं आया !!
तपस्विनी है वह ,
मुझे खोजती , मेरे इर्द-गिर्द ही भटकती होगी ?
मै पहचान नहीं पाया,
शायद पास की नजर कमजोर है मेरी |
जीवन का अंतिम छोर है ये |
अब तो ज़िन्दगी भी शूल बनकर सालती है |
पर तेरी ममता आज भी याद आती है |
मै मिट जाऊंगा |
ज़िन्दा रहेगी तेरी ममता |
वह अमिट अजर अमर तेरा साया बनकर मुझे ढूंढती रहेगी |
माँ !
तेरी ममता मुझे मिटने के बाद भी याद आएगी |
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