दीपक की तलाश
आज भोर भई तो देखा , भानू भी ले रहा जम्हाई था |
कुछ और भी था इससे जयादा
कोई तरुण
खो गया तरुणाई था |
दिनकर दिन कर गया
लग रहा था आज भास्कर की किरणों में कोई धीमा
गरल समां गया |
तृण
तर तो था ओंस से ,
पर उससे भी गायब थी
नमी |
पास से चिड़िया कोई कोलाहल कर गुजर गयी
पर ! जागने
के बजाय थककर आज नींद भी सो गयी |
कालचक्र जीत गया ताकि ,
सांझ कोई ढल
सके
पर तलाश बाकी थी अभी ,
उस दीपक की
जो डूबते धुंधले से
सूरज को रोशनी दे सके |
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