बारूद की फैक्ट्री में गोले बनाये जा रहे थे | कुछ किसी पर आग बरसाने हेतु तो कुछ चट्टाने तोड़ने हेतु |
बारूद का हर कण खुश था, अपनी किस्मत पर ओर होता भी क्यों नहीं , उसे(बारूद का कण ) एक मंच
जो मिल गया था अपनी ऊर्जा ,अपना अस्तित्व सिद्ध करने के लिए |
फैक्ट्री में विस्फोटक बनाने का काम बढता जा रहा था | रोज नयी बारूद आ रही थी ,नए अन्वेषण हो रहे
थे | इसी बीच एक मुठ्ठी बारूद बिखरकर दूर गिर गयी थी | हवा का हर एक झोंका बारूद की उस मुठ्ठी
को उसके गंतव्य तक पहुचाने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे शायद अपने होने का ज्ञान ही नहीं था |
वह पहचान नहीं पा रही थी , अपनी ऊर्जा को ,अपने आप को | हवा के अनगिनत झोंके उस के पास से गुजर गए लेकिन बारूद इन सबसे बेखबर थी |
एक रोज तेज बरसात हुई, बारूद भीग चुकी थी | वह अपना अस्तित्व खो चुकी थी | दूसरी तरफ कुछ बारूद
गोले में तब्दील हो चुकी थी, अपने आप को साबित करने के लिए |
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