Sunday, 12 January 2014

भीगा बारूद


                                         
        बारूद की फैक्ट्री में गोले बनाये जा रहे थे | कुछ किसी पर आग बरसाने हेतु तो कुछ चट्टाने तोड़ने हेतु |
   बारूद  का  हर कण खुश  था, अपनी किस्मत पर  ओर होता भी क्यों नहीं , उसे(बारूद का कण ) एक  मंच
  जो  मिल गया था अपनी ऊर्जा ,अपना अस्तित्व  सिद्ध करने के लिए |

    फैक्ट्री में विस्फोटक बनाने का काम बढता जा रहा था | रोज नयी बारूद आ रही थी ,नए अन्वेषण  हो रहे
थे |  इसी  बीच  एक मुठ्ठी बारूद  बिखरकर  दूर  गिर गयी थी |  हवा  का हर एक झोंका  बारूद  की उस मुठ्ठी
  को उसके गंतव्य  तक  पहुचाने  की कोशिश  कर रहा था लेकिन उसे शायद अपने होने का ज्ञान ही नहीं  था |
 वह  पहचान नहीं पा रही  थी , अपनी  ऊर्जा को ,अपने आप को | हवा के अनगिनत  झोंके  उस के  पास से गुजर गए  लेकिन बारूद इन सबसे  बेखबर थी |

एक  रोज  तेज  बरसात हुई, बारूद भीग चुकी थी | वह अपना  अस्तित्व खो चुकी थी | दूसरी तरफ कुछ बारूद
 गोले में  तब्दील हो  चुकी थी, अपने आप को साबित करने के लिए |




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