संस्कृत को कैंसर हो रहा है एकदम दयनीय हालत में संस्कृत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एक कोने में पड़ी लम्बी साँसे ले रही है | दुनिया भर के वैद्य संस्कृत को घेरे हुए हैं | कभी कभार वो एक एक करके कमरे से बाहर आते हैं और बॉलीवुड की फिल्मों के डॉक्टर्स की तरह "आई एम् सॉरी " कहकर चले जाते हैं | मुझे संस्कृत की इस नाजुक हालत का दुःख नहीं है , मुझे चिंता इस बात कि सता रही है की संस्कृत के जाने के बाद उन कहानियों का क्या होगा जिनमे मुख्य भूमिका काशी से संस्कृत पढ़े पंडित की होती थी | संस्कृत कि तबियत और बिगड़ जाती है | इसी बीच एक और पारंगत वैद्य बुलाया जाता है Dr Firoz Khan , पर ये क्या !! ये तो मुसलमान है !! कुछ जवान पंडित इस पर भड़क जाते हैं | कुछ लोग समझाने कि कोशिश में लगे हैं |
संस्कृत कुछ कहना चाहती है लेकिन अब वह कुछ नहीं कह सकती उसकी जगह अब उसकी बड़ी बहन संस्कृति ने ले ली है अब संस्कृत की और से सिर्फ संस्कृति बोलेगी | ये दोनों यूँ तो जुड़वां बहने हैं लेकिन संस्कृति फिटनेस फ्रिक थी तो अब तक तंदुरूस्त है | ये बात ओर है की आज संस्कृति का ये मुस्कुलेर जिस्म मज़हब और जाति जैसे ज़हरीले स्टेरॉयड लेकर बना है | संस्कृत को अब खून की उल्टियाँ हो रही हैं वह शायद "कालिदास और दारा शिकोह" को याद कर रही है |
मैंने कुछ सज्जनों को कबीर के दोहे , "जाति ना पूछो साधू की" , का हवाला दिया तो मुझे तर्क दिया गया की इसमें सिर्फ जाति की बात हुई है धर्म की नहीं | हाँ शायद यही वजह थी की कबीर शायद दो मजहबों के बीच लटक कर रह गया | मैं नि:शब्द हूँ वैसे ही जैसे कबीर था |
खैर मुझ जैसे जातिवादी आदमी की कलम से ये शब्द नहीं सुहाते , हाँ इतना जरूर कहूँगा की संस्कृत छटपटा रही है | जिस भाषा पर सिर्फ हिन्दू हक जताते हैं वो इस देश की ०.००2 % जनता द्वारा बोली जाती है | कुछ ऐसा ही हाल उर्दू का है बस उसका कैंसर 1st स्टेज का है | देश की 4.3 % जनता उर्दू बोलती है | देश में 196 बोलियां विलुप्ति के कगार पर हैं |
जो लोग फ़िरोज़ खान के खिलाफ पंडित मदन मोहन मालवीय का हवाला देते हैं वो jio का मुफ्त वाला इन्टरनेट इस्तेमाल करके काशी विश्व विद्यालय की वेबसाइट जरुर देखें ||
मैंने कुछ सज्जनों को कबीर के दोहे , "जाति ना पूछो साधू की" , का हवाला दिया तो मुझे तर्क दिया गया की इसमें सिर्फ जाति की बात हुई है धर्म की नहीं | हाँ शायद यही वजह थी की कबीर शायद दो मजहबों के बीच लटक कर रह गया | मैं नि:शब्द हूँ वैसे ही जैसे कबीर था |
खैर मुझ जैसे जातिवादी आदमी की कलम से ये शब्द नहीं सुहाते , हाँ इतना जरूर कहूँगा की संस्कृत छटपटा रही है | जिस भाषा पर सिर्फ हिन्दू हक जताते हैं वो इस देश की ०.००2 % जनता द्वारा बोली जाती है | कुछ ऐसा ही हाल उर्दू का है बस उसका कैंसर 1st स्टेज का है | देश की 4.3 % जनता उर्दू बोलती है | देश में 196 बोलियां विलुप्ति के कगार पर हैं |
जो लोग फ़िरोज़ खान के खिलाफ पंडित मदन मोहन मालवीय का हवाला देते हैं वो jio का मुफ्त वाला इन्टरनेट इस्तेमाल करके काशी विश्व विद्यालय की वेबसाइट जरुर देखें ||