Sunday, 17 April 2016



     क्षितिज के उस पार ,
     जहाँ आसमान ढह रहा है
     मैं ज़िंदगियाँ ढूँढ रहा हूँ
     अँधेरे से लड़ेंगे जो भोर तक
     उन सितारों का अन्जाम ढूँढ रहा हूँ
     वाम है , दक्षिण है
     बीच का था जो पंथ उसका पैगाम ढूँढ रहा हूँ
     जला दिए गये जो सत्ताओं की आग में
     उन पर लगे इल्जाम ढूँढ रहा हूँ
    बनाये तो सब गये हैं
    स्वयंभू हो , वो हैवान ढूँढ रहा हूँ
    मार दिए गये सब भूमिपुत्र
    मैं ज़िन्दा कोई  हलधर ढूँढ रहा हूँ
    तुम कहते हो नश्वर है झूठ,
    तो शाश्वत है जो ,मैं वो सत्य ढूँढ रहा हूँ
    धारणाएं बदली , मनुज बदले
    मैं बदलाव के मायने ढूँढ रहा हूँ
    धुंधले हो चुके हैं सब ,
   खुद को देख पाऊं, वो आईने ढूँढ रहा हूँ
    बिखेर दी जो स्याही कलमों ने
    अब तक उसका मतलब ढूँढ रहा हूँ
    तुम जो कब से बैठे हो निःशब्द
   हाँ, मैं तुम्ही से कुछ पूछ रहा हूँ  |
        

Thursday, 14 April 2016




  तुम उतर आओ कविताओं में
  क्यों अब तक खड़ी हो ?
  अल्हड़ रात की चौखट पर
  एक कदम बढ़ो तो ,
 वीराने कानन में गूंजो तो
तुम शब्द बनकर मिलो कभी
मैं तैरूँगा तुम्हारे संग
प्रेम की नदियों में
कविताओं के सागर में
तुम थक चुकी हो ?!
मैं अनवरत सृजित हो रहा हूँ
कभी देखो चौखट के उस पार
मैं क्रंदन कर रहा हूँ
फिर से पुकारा है तुम्हे
आवाजें वापस लौट आई हैं
ये रात मुझसे बात नही करती ,
तुम्हारा ज़िक्र करता हूँ तो भाग जाती है
देखो फिर भाग खड़ी हुई
अब इसका पीछा मुश्किल हो गया है
बहुत चल लिया रेगिस्तान में
अब प्यास लगी है
कवितायेँ भी सूख गयी हैं ,
रसहीन हो चुकी हैं
अब तो तुम उतर आओ कविताओं में
क्यों अब तक खड़ी हो ?
 अल्हड़ रात की चौखट पर


Friday, 1 April 2016




                              विचार हैं ,
                              मुद्दे हैं ,
                             नूतन है ,
                             पुरातन है ,
                             हास्य है ,
                             क्रन्दन है ,
                             उपमाएं हैं ,
                              अलंकार हैं ,
                              कर्ता है ,
                              कर्म है ,
                        कविता गायब है ,
                        मैं ढूंढ़ता हूँ उसे ,
                        मुद्दों ,अलंकारों ,नवरसों की भीड़ में |
                        वो ना दूर जाती है , ना पास आती है !!
                         बस ,दूर खड़ी कुछ बेतुके गीत गाती है |