आज आँखे मूँद , कुछ गाँव देखें हैं सपनो में
जो पीछे रह गये हैं ,दौड़ने की होड़ में ||
गाँव की उस टूटी-फूटी सड़क पर चलती जीप में
90 के दशक के गाने बजते होंगे आज भी ?
ओवरलोड जीप पर लटक सफ़र करते होंगे नौजवान ?
आज भी |
चालक कमीज के दो बटन खुले रखता होगा ?
उसके जेब में उछलते सिक्कों की छन्न-छन्न
गानों के साथ घुलती होगी ?आज भी |
बीडी पीकर बुजुर्ग जीप में धुआं छोड़ते होंगे |
कोई शहर से लौटा बाबू , सिगरेट निकलकर
कश खींचता होगा, आज भी ?
एक-दूसरे को देखकर लोग मुस्कुरा देते होंगे ?
धूप उतनी ही तेज़ होगी ,
उन पथरीले रास्तों पर चलती जीप के साथ
उतनी ही तेज़ चलती होगी पवन ?
आज भी ?