Tuesday, 27 September 2016



गुणवत्ता से समझोता नही साब
घटिया ईमान बेचकर प्रतिष्ठा ना करानी ख़राब
डिमांड सप्लाई का लोचा है
इसीलिए पहले आपका सोचा है
दोपहर तक सूरज माथे चढ़ जायेगा
अभी ले लो साब, फिर भाव और बढ़ जायेगा

ये सज्जन तोलकर ईमानदारी बेच रहा था ..

ना ठगो हमें ..
हम अपने अधिकार जानते हैं
डिजिटल इंडिया का जमाना है
हर सरकारी योजना, सकल अर्थशास्त्र पहचानते हैं

साब लेना है तो लो अब थोड़ी ही बची है ...
ईमानदारी चीज़ ही एसी है ,
कालाबाजारी में भी खलबली मची है

ठीक है हम जरा गंगा हो आते हैं
पाप धो, तुम्हे निपटाते हैं
अरे सर ये घोर अपराध न करना
क्लीन गंगा चल रहा है ,
पाप उधर ना धोना ...
हमने फ्रंट पेज पर समाचार दिया है
कल ही गंगा का गोमूत्र से उपचार किया है
गोमूत्र से याद आया
कोई उचित मूल्य की गाय बताओ
भैंस ले लो साब , गाय दूध कम देती है
दूध क्यों !! जब गोमूत्र से दुनिया चलती है .....



गुणवत्ता से समझोता नही साब
घटिया ईमान बेचकर प्रतिष्ठा ना करानी ख़राब
डिमांड सप्लाई का लोचा है
इसीलिए पहले आपका सोचा है
दोपहर तक सूरज माथे चढ़ जायेगा
अभी ले लो साब, फिर भाव और बढ़ जायेगा

ये सज्जन तोलकर ईमानदारी बेच रहा था ..

ना ठगो हमें ..
हम अपने अधिकार जानते हैं
डिजिटल इंडिया का जमाना है
हर सरकारी योजना, सकल अर्थशास्त्र पहचानते हैं

साब लेना है तो लो अब थोड़ी ही बची है ...
ईमानदारी चीज़ ही एसी है ,
कालाबाजारी में भी खलबली मची है

ठीक है हम जरा गंगा हो आते हैं
पाप धो, तुम्हे निपटाते हैं
अरे सर ये घोर अपराध न करना
क्लीन गंगा चल रहा है ,
पाप उधर ना धोना ...
हमने फ्रंट पेज पर समाचार दिया है
कल ही गंगा का गोमूत्र से उपचार किया है
गोमूत्र से याद आया
कोई उचित मूल्य की गाय बताओ
भैंस ले लो साब , गाय दूध कम देती है
दूध क्यों !! जब गोमूत्र से दुनिया चलती है .....

Monday, 12 September 2016

गाँव


शहर-शोर छूटे हैं पीछे
धूप ने बदन भिगोया है
मुकर गयी हैं सड़कें ,
पगडंडियों ने फिर रास्ता दिखाया है
लगता है फिर कोई गाँव आया है

थोथी चमक मैली हुई
धुआं पार भी नज़र आया है
हर कली महकी है बाग़ की
दुश्मन भी मुस्कुराया है
लगता है फिर कोई गाँव आया है

किताब के पन्नों ने बिखेरी है खुशबू
बादलों ने बिन गरजे सावन बरसाया है
माटी महकी है सौंधी-सौंधी
कन्धों ने फिर से हल उठाया है
लगता है फिर कोई गाँव आया है