हवा
हवा खाली सी है ,सुनापन लिए हुए |
किसी गाँव से गुजरी है ,अभी |
रातें शांत होती हैं वहाँ
इस वक्त सो चुके होंगे सब |
कही सत्संग ,कही कुत्तों का भौकना
चुप्पी का अहसास कराता है |
गाँव के अँधेरे से निकली है अभी ,
अभी राह भटक जाएगी
शहर की रोशनी से चोंधिया कर |
हर गली से समेट लेगी
पाप ,पुण्य ,हिंसा
शिक्षितों की शिक्षा |
पो फटे पहुचेगी अगले गाँव
सूनापन खोकर , कुछ साथ लेकर |
फिर आगे बढ़ जाएगी
सूरज को दिया दिखाकर ,
शहर की फीकी रोशनी फैलाकर |
लेखनी भेद पूछती है
दोनों गाँवों में ,
और मैं घुमाता रहता हूँ उसे ,
शहर पर ,गोल -गोल |
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