नववर्ष
दीपक राग़ तू आज गा
कितनी बत्तियाँ नववर्ष पर जलाएगा ?
उस झोले में फिर से दर्द समाएगा |
वो भी पूजेंगे अपने देव को
फिर से आतंक पीठ सहालायेगा |
गला भर्रायेगा , रूहें कापेंगी
शालाओं , सड़कों पर
फिर लाशें तांडव नाचेंगी |
फिर नववर्ष आएगा
फिर लहू टपकेगा लेखनी से
फिर उस झोले में दर्द समा पायेगा ?
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