Thursday, 25 September 2014

संसद


                  संसद में बिल पास किया जाना था ,
                   मुद्दा महंगाई को मिटाना था |

               विपक्ष  का कहना था ,
                     नफ़ा नही नुकसान होगा |
               पक्ष बोला बिल पास किया जाये ,
              वरना संसद की जगह कब्रिस्थान होगा |
             विपक्ष को बात कचोट गयी |
       इधर से टेबल , उधर से कुर्सी फेंकी गयी |

             कल नया बिल पास किया जाएगा ,
                 टैक्स बढाकर  ,
             संसद में नया फर्नीचर लगवाया  जायेगा |

Wednesday, 17 September 2014

अवार्ड


     फिल्म शूट की जा रही थी ,
        दृश्य था , भीख |

    भिखारी लाया गया |
  अच्छा किया था उसने ,
   सौ रूपये में !!!!

अब हीरो की कमीज फाडू एंट्री थी |
    चार कमीज फाड़े गए ,
 सीन में जान डालनी थी |

  सुबह खबर मिली |
शहर में एक भिखारी ठण्ड से मर गया |

     फिल्म अवार्ड जीत गयी |
  अच्छे सामाजिक चित्रण के लिए |

Saturday, 6 September 2014

समाज बनाम सलाखें


 
         एक रोज सपने में, हम बड़े  आदमी बन गए |
       ज़ोश में जज्बाती हो कुछ भूल कर गए |

         ज्यादा कुछ नहीं,
      महिला सुरक्षा पर  समाज को ज़िम्मेदार ठहरा दिया |
       हम मुख्य समाचारों में छपे थे ,
      आलोचकों ,मीडिया के पौ बारह थे |

       सुना सामाजिक क्रांति होगी ,
           हमारे पाप की सजा मौत से भी बड़ी होगी  |
   
        कामगार काम छोड़ सड़क पर उतर आये |
     लालबत्ती में बैठे महाशय हाथ हिला कर चले गए |

     मंत्री जी की नसीहत मिली ...
   तुम्हे बोलने की तमीज नहीं ,
         औकात क्या है तुम्हारी |
    जितना हमारा कच्छा , उतनी तुम्हारी कमीज नहीं |

    बाज़ार बंद हुए ,जाम लगे ,एम्बुलेंस अटकी ,
     दंगे फिर बलात्कार  भी हुए |
   हम सलाखों के अन्दर हुए |

    पर सलाखें मजबूत थी ,
       समाज से ........|