Tuesday, 6 June 2017

तुम जलकर राख हो जाते हो
हम जलकर धुआं हो जाते हैं
ख़ुदा की रहमत भी  उन पर है अ-दोस्त
जो आग लगाकर रहनुमा हो जाते हैं

अपना दिल महफ़ूज ना रख पाए
मेरा दिल चुराने की बात करते हो ?
अपना आंगन उजाड़ आये
ग़ैरों का संवारने कि बात करते हो ?
मुझे मिटाने का इरादा है ?
 तुम ही काफी थे  
पूरा शमशान क्यों लाये हो ?


Sunday, 4 June 2017

इस शहर कि परतें उधड रही हैं
और मुझ पर आ लिपटी हैं
नित नूतन होता यह,
अब चमकने लगा है
इसकी पुरानी ,जूठी  परतों तले दबा
मैं भी बदल सा गया हूँ
बदले मायने लेकर गाँव पहुँचता  हूँ
मेरा गाँव मुझे धिक्कार देता है
पहचानने से भी कतरा जाता है
मैं लौट आता  हूँ
इस शहर से एक और सौदा कर लेता हूँ