Saturday, 20 May 2017

चलो नुक्कड़ नाटक देखने चलते है
पात्र क्या हैं ?
एक लोकतंत्र है दूसरा तानाशाह है
अद्भुत !
चलते हैं |
कुछ देर नौटंकी चलती है फिर अचानक दोनों पात्र तांडव नाचने लगते है | मैं लोकतंत्र को तानाशाह के साथ तांडव नाचता देखकर चकित हूँ , पूछता हूँ तो आइटम सॉंग का हवाला देकर चुप करा दिया जाता हूँ |
     अचानक नाचते-नाचते लोकतंत्र टूटकर तानाशाह कि बाँहों में गिर पड़ता है ! भीड़ में चुप्पी छा गयी है , मैं अकेले तालियाँ पीटता हूँ | मतदाताओं कि आहत भीड़ कुछ देर मुझे घूरती है फिर मुझ पर टूट पड़ती है और लोकतंत्र फिर जी उठता है !!
                    पर्दा गिरता है 

Tuesday, 2 May 2017


कस्तूरी मृग सी हो गयी है ज़िन्दगी
वो कहतें हैं  कि तुम  काबिल बहुत हो
और हम खुद  के इर्द-गिर्द भटक रहें हैं
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मैं बेहतर  हो रहा  हूँ
तुम्हारे पैमानों से नापा जा रहा  हूँ
ये पैमाने ओछे हैं  
और  परिभाषाएं नंगी हैं
या फिर भद्दे रंगों से रंगी हैं
इन्हें धो कर सुखाओ
ये निश्चय ही फीकी पड़ जाएंगी
तले दबी सभ्यताएं फिर जाग जाएंगी
यक़ीनन , तुम सब मारे जाओगे
जन्नत-जहन्नुम आसमान से गिर पड़ेंगे
देव-दानव भी मारे जाएंगे
सब साफ़ सफ़ेद कफ़न ओढाए जाओगे
मैं बर्बाद हो दैत्य बन जाऊंगा...to be continued






अंतिम छोर कोसों दूर है
तुम्हारी पैमानों कि  परिसीमाओं से
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