Saturday, 15 April 2017

बारूद भर कर पूछते हैं वो ,जलते क्यों हो ?
खैर करें वो ख़ुदा का ,हम फटते नही |
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ग़र जल तुम रहे हो ,
तो तप हम भी रहे हैं |
तुम भी पलटो ,
हम भी पलटकर देखें
ये आग लगा कौन रहें हैं ?
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मैं फैज़ हो जाऊं ,
मैं मंटो भी |
मैं दिनकर हो जाऊं ,
मैं शंकर भी |
बदलेगा वक़्त
सवाल वही होंगे
फिर होंगे मेरे जैसे कुछ और भी |
राहें बदलेंगी
राहगीर भी |
सच वही होंगे झूठ थे जो कल ,
झूठ होंगे जो कल भी
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खुद से पूछना वही
जो मुझसे  पूछते हो |
फिर एक बार हम भी पूछेंगें
बर्खुरदार ,
तुम इतने सवाल क्यों पूछते हो ?



Thursday, 6 April 2017

आईनों से सजी दीवारें ,
अनन्त महत्वाकांक्षाएं ,
ताकती उम्मीदें
सब मुझे आ घेरे हैं
और मैं टुकड़ों में बंट गया हूँ |
ढलते सूरज ने मिसालें दी हैं
मैं फिर उठ गया हूँ |
इस बार दीवारें और मजबूत हो गयी हैं
सीसों की धूल झाड दी गयी है
पैरों को हल्का सा काट कर दौड़ की दूरी बढ़ा दी है
काल करम दोहरा रहा है
और मैं फिर कलम के इर्द-गिर्द बिखर रहा हूँ 

Tuesday, 4 April 2017

  भाई इतना जोर से क्यों गा रहे हो ? मैंने एक लौंडे से पूछा, जो कानों में earphone लगाये बेख़बर हो बहुत तेज़ गा रहा था |मैंने earphone लगा रखे हैं तो मुझे मेरी तेज आवाज सुनाई नही देती, वह बोला | पर आपने earphone क्यों लगा रखे हैं ? मुझ पर तंज कसते हुए बोला , श्रीमान आपको विदित हो बाहर शोर बहुत है अतः मैंने earphone लगाये हैं |  यकायक मुझे  कुछ कथित स्व्सत्यापित देशभक्त , कुछ वामपंथी , दक्षिणपंथी याद आ गये और अंग्रेजी शब्द hypocrisy की समझ भी |