निर्वाक-निनाद
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About The Blog: क्या और क्यों
Saturday, 16 August 2014
असमंजस
अकूत दरिया हैं ,
जाने किस ओर बह जाऊं |
सागर से मिलने के वहम में ,
डरता हूँ , ना डूब जाऊं |
खिलती कलियाँ देख ,बनकर मधुकर
मचल जाऊं |
मौत के करीब जा ,
सासों की कीमत जान आऊ |
पर डरता हूँ ........
शायद ही फिर सोती कल्पनाओं को जगा पाऊं
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